दीवाली के बाद दिल्ली और देश के अन्य बड़े शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर गंभीर स्थिति तक पहुंच गया है। दिल्ली-एनसीआर में पटाखों के फोड़े जाने के बाद हवा की गुणवत्ता तेजी से गिर गई, जिससे आनंद विहार और सरिता विहार जैसे इलाकों में एक्यूआई 300 के पार हो गया। सुबह होते ही राजधानी एक मोटी धुंध की चादर में लिपटी नजर आई, जिससे लोगों को सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
दिल्ली की बिगड़ती हवा
दिल्ली सरकार ने इस बार भी आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन इसके बावजूद लोगों ने जमकर पटाखे जलाए। इससे वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) कई इलाकों में गंभीर स्तर तक पहुंच गया। सरिता विहार और आनंद विहार जैसे इलाकों में AQI 300 के पार हो गया, जिससे लोगों की आंखों में जलन और सांस की समस्याएं बढ़ गईं।

अन्य शहरों का हाल
चेन्नई और उसके आस-पास के जिलों में भी वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ गया। तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, चेन्नई के मनाली में एक्यूआई 254, अरुंबक्कम में 210 और पेरुंगुडी में 201 रिकॉर्ड किया गया। बोर्ड ने चेतावनी दी है कि AQI का स्तर 201-300 के बीच रहने पर यह ‘खराब’ माना जाता है और 301-400 के बीच ‘बहुत खराब’। इससे अधिक स्तर पर यह ‘गंभीर’ स्थिति को दर्शाता है, जो सांस की समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए बहुत हानिकारक है।
राजस्थान और कोलकाता में स्थिति
जयपुर में भी दीवाली के दौरान आतिशबाजी के कारण वायु गुणवत्ता का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया। यहां का AQI 350 से ऊपर चला गया, जिससे हवा में जहरीले तत्वों की मात्रा बढ़ गई। अन्य जिलों जैसे राजसमंद, बीकानेर, भरतपुर, आदि में भी स्थिति गंभीर रही।
कोलकाता में बुधवार शाम से ही हवा की गुणवत्ता खराब होने लगी थी। दीवाली की रात को यहां AQI का स्तर 100 से ऊपर चला गया, जिससे बुजुर्ग और सांस की समस्याओं वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। जैसे-जैसे रात बढ़ी, प्रदूषण का स्तर और भी बढ़ गया। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि कोलकाता में अक्टूबर के दूसरे और तीसरे हफ्ते से ही हवा की गुणवत्ता खराब होने लगती है, और सर्दियों के पहले प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
प्रदूषण के उच्च स्तर ने खासकर उन लोगों के लिए परेशानी खड़ी कर दी है, जिन्हें पहले से सांस की समस्याएं हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इस समय लोगों को बाहर कम से कम निकलने की सलाह दी जा रही है। बुजुर्ग, बच्चे और अस्थमा के मरीजों को विशेष रूप से सतर्क रहने की जरूरत है। प्रदूषित हवा में लंबे समय तक रहना इन लोगों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है और फेफड़ों के संक्रमण जैसी समस्याएं भी बढ़ सकती हैं।
सरकारी कदम और चुनौतियां
हालांकि सरकार ने दिल्ली और अन्य प्रमुख शहरों में आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन इस पर अमल कराने में चुनौतियां आईं। लोगों की व्यक्तिगत पसंद और सामाजिक परंपराएं इन नियमों को तोड़ने में भूमिका निभाती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि केवल प्रतिबंध लगाना ही समाधान नहीं है; लोगों को जागरूक करना और वैकल्पिक पर्यावरण-संवेदनशील तरीकों को अपनाना भी जरूरी है। दीवाली पर इको-फ्रेंडली पटाखों और दीप जलाने जैसे विकल्पों को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
निष्कर्ष
दीवाली का पर्व खुशी और उजाले का होता है, लेकिन इस खुशी को जिम्मेदारी के साथ मनाना जरूरी है। वायु प्रदूषण न केवल पर्यावरण बल्कि हमारी सेहत के लिए भी हानिकारक है। इस बार की दीवाली ने यह साबित कर दिया कि हमें अपनी परंपराओं में बदलाव लाने की आवश्यकता है ताकि हम और आने वाली पीढ़ियां एक साफ और सुरक्षित वातावरण में रह सकें।
आने वाले समय में, लोगों की जागरूकता और सरकार की नीतियां दोनों ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी ताकि वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को काबू में किया जा सके।
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